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|रचनाकार=प्रतिभा सक्सेना
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
मेरे बच्चों, दीवाली का पहला दीप वहाँ धर आना...
*
जिस घर से कोई निकला हो अपने सिर पर कफ़न बाँधकर,
सुख-सुविधा, घर-द्वार छोड़ कर मातृभूमि के आवाहन पर .
बच्चों, उसके घर जा कर तुम उन सबकी भी सुध ले लेना
खील-बताशे लाने वाला कोई है क्या उनके भी घर.
अपने साथ उन्हें भी थोड़ी, इस दिन तो खुशियाँ दे आना .
*
छाँह पिता की छिनी सिरों से जिनकी, सिर्फ़ हमारे कारण
हम सब रहें सुरक्षित .जो बलिदान कर गए अपना जीवन
बूढ़े माता-पिता विवश से, आदर सहित चरण छू लेना,
अपने साथ हँसाना, भर देना उनके मन का सूनापन,
आदर-मान और अपनापन दे कर उनका आशिष पाना!
*
दीवाली की धूम-धाम से अलग न वे रह जायँ अकेले,
तुम सुख-शान्ति पा सको, इसीलिए तो उनने यह दुख झेले.
उन सबका जीवन खो बैठा धूम-धाम फुलझड़ी पटाखे,
रह न जायँ वे अलग-थलग जब लगें पर्व-तिथियों के मेले.
उनकी जगह अगर तुम होते, यही सोच सद्भाव दिखाना .
*
हम निचिंत हो पनप सके वे मातृभूमि की खाद बन गये,
रक्त-धार से सींची माटी, सीने पर ले घाव सो गए .
वह उदास नारी, जिसके माथे का सूरज अस्त हो गया,
तुम क्या दे पाओगे, जिसके आगत सभी विहान खो गए!1
उसने तो दे दिया सभी कुछ, अब तुम उसकी आन निभाना.
*
अपने जैसा ही समझो, उन का मुरझाया जो बेबस मन,
देखो, बिना दुलार-प्यार के बीत न जाए कोई बचपन .
न्यायोचित व्यवहार यही है- उनका हिस्सा मिले उन्हें ही,
वे जीवन्त प्रमाण रख गए, साधी कठिन काल की थ्योरम
अपनी ही सामर्थ्यों से, बच्चों तुम 'इतिसिद्धम्' लिख जाना!
*
</poem>
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मेरे बच्चों, दीवाली का पहला दीप वहाँ धर आना...
*
जिस घर से कोई निकला हो अपने सिर पर कफ़न बाँधकर,
सुख-सुविधा, घर-द्वार छोड़ कर मातृभूमि के आवाहन पर .
बच्चों, उसके घर जा कर तुम उन सबकी भी सुध ले लेना
खील-बताशे लाने वाला कोई है क्या उनके भी घर.
अपने साथ उन्हें भी थोड़ी, इस दिन तो खुशियाँ दे आना .
*
छाँह पिता की छिनी सिरों से जिनकी, सिर्फ़ हमारे कारण
हम सब रहें सुरक्षित .जो बलिदान कर गए अपना जीवन
बूढ़े माता-पिता विवश से, आदर सहित चरण छू लेना,
अपने साथ हँसाना, भर देना उनके मन का सूनापन,
आदर-मान और अपनापन दे कर उनका आशिष पाना!
*
दीवाली की धूम-धाम से अलग न वे रह जायँ अकेले,
तुम सुख-शान्ति पा सको, इसीलिए तो उनने यह दुख झेले.
उन सबका जीवन खो बैठा धूम-धाम फुलझड़ी पटाखे,
रह न जायँ वे अलग-थलग जब लगें पर्व-तिथियों के मेले.
उनकी जगह अगर तुम होते, यही सोच सद्भाव दिखाना .
*
हम निचिंत हो पनप सके वे मातृभूमि की खाद बन गये,
रक्त-धार से सींची माटी, सीने पर ले घाव सो गए .
वह उदास नारी, जिसके माथे का सूरज अस्त हो गया,
तुम क्या दे पाओगे, जिसके आगत सभी विहान खो गए!1
उसने तो दे दिया सभी कुछ, अब तुम उसकी आन निभाना.
*
अपने जैसा ही समझो, उन का मुरझाया जो बेबस मन,
देखो, बिना दुलार-प्यार के बीत न जाए कोई बचपन .
न्यायोचित व्यवहार यही है- उनका हिस्सा मिले उन्हें ही,
वे जीवन्त प्रमाण रख गए, साधी कठिन काल की थ्योरम
अपनी ही सामर्थ्यों से, बच्चों तुम 'इतिसिद्धम्' लिख जाना!
*
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