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त्वमेव स्वात्मानं परिणमयितुं विश्ववपुषा ।
चिदानन्दाकारं शिवयुवति भावेन बिभृषे ॥३५॥
 
तवाज्ञा चक्रस्थं तपनशशि कोटि द्युतिधरं ।
परं शंभुं वन्दे परिमिलित पार्श्वं परचिता ॥
यमाराध्यन् भक्त्या रविशशिशुचीनामविषये ।
निरातंके लोको निवसतिहि भालोकभवने ॥
 
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