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|रचनाकार=नरेश कुमार विकल
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<poem>
हमरे घरक बहिकिरनी महतीन लगैयै।
अहाँ मानी ने मानी सौतीन लगैयै।

सींथ सेनूर आ साज सिंगार बिना
अयली घोघ आ मंहफा कहार बिना
ई तँ देखबा मे कनिया सँ भिन्न लगैयै।
अहाँ मानी ने मानी सौतीन लगैयै।

बिना अरिपन कें आँगन मे नाचै एना
भऽ कऽ रहतै जरूर किछु लागय तेना
हमर आँचरक फूल लेत छीन लगैयै।
अहाँ मानी ने मानी सौतीन लगैयै।

ई तऽ अबिते हमर सुख चैन लुटल
हमर सऽख-सेहन्ता पर बज्र खसल
हमर आगूक दिन दुर्दिन लगैयै।
अहाँ मानी ने मानी सौतीन लगैयै।

हमर कोहबर मे कहिया सँ कुचरैयै काग
दोष ओकरे किऐक ई तऽ हम्मर अभाग
काटब जिनगी हम ओकरे अधीन लगैयै।
अहाँ मानी ने मानी सौतीन लगैयै।
</poem>
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