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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
}}
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<poem>
म्हे दो-तीन
सगा-समधीं
कई दिनां सूं
मिल्या हा
थोड़ी देर री
बंतळ पछै
म्हारै बिचाळै
पसरग्यो मून
जको लागै हो खारौ
पण तोड़ी ज्यौ नीं म्हारै सूं
कै तो म्हारै
गमां रा भारा हा
मोटा
अर हुय चुक्यौ हो म्हानै
बगत री कमी रौ
अहसास
अर कै म्हे
सोच लियौ-
फालतू है
खुलणो।
</poem>
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म्हे दो-तीन
सगा-समधीं
कई दिनां सूं
मिल्या हा
थोड़ी देर री
बंतळ पछै
म्हारै बिचाळै
पसरग्यो मून
जको लागै हो खारौ
पण तोड़ी ज्यौ नीं म्हारै सूं
कै तो म्हारै
गमां रा भारा हा
मोटा
अर हुय चुक्यौ हो म्हानै
बगत री कमी रौ
अहसास
अर कै म्हे
सोच लियौ-
फालतू है
खुलणो।
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