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दो मजूर / निशान्त

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<poem>
आथण पौर
मजूरी मांगण सारू
दो मजूर आया
सैठ री दुकान

अेक, जकै चिणी ही भींत
बड़्यो
संकतो-संकतो

कनै पड़ी कुरसी छोड़’र
बैठ्यो तळै

जित्ता दिया
बित्ताई ले लिया

दूजो हो पल्लेदार/युनियन रो पल्लेदार

पूरै ठरकै सूं ली
उण बोर्यां री ढुआई।
</poem>
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