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जीवण सारू / निशान्त

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<poem>
हरेक आदमी
अक्सर अपणै-आपनै
कमजोर गिणै
बा बात अळगी कै
पूरो आखतीजेड़ो
भड़कज्यै
अर भिड़ज्यै
पण अक्सर
सैंवतो रैवै चुपचाप
खैर आपां तो इन्सान हां
आपां रै तो देवतावां नै भी
याद दिरावण पर ई
याद आंवतो आप रो जोर
जियां कै हड़मान जी नै
तो इस्यै मांय जरूरत होवै
आदमी नै याद दिरावण री कै
जिस्यो नाड़ी तंत्र तेरो है
बिस्यो ई है आगलै रो
कम नीं है तूं भी किणी स्यूं ।
</poem>
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