भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डागदर रो घर / निशान्त

1,104 bytes added, 10:12, 9 मई 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |अनुवादक= |संग्रह=आसोज मा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|अनुवादक=
|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
अेक डागदर रै घरै म्हे
दिनूगै सात-आठ बजी
नांनियो दिखावण गया
बारै भारी काढती बाई
म्हानै बतायो कै
सा‘ब न्हावै
गरदै स्यूं बचण सारू
म्हे कमरै मांय आय‘र बैठ्या
बठै अंधेरो हो
खिड़क्यां-रोशनदानां मांय
ठूंस्या पड़्या हा अखबार
उडीक मांय
बैठ्यै रै मेरै
खाग्या माच्छर
पड़दै रै लारै आंगण मांय
आवै ही कींनै ई धांसी
सुण‘र
ठणक्यो मेरो माथो ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits