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|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
हरेक सिर चढै
रोज
सरकारी, गैर सरकारी
अर विदेसी करजो
मंदो है हर कारोबार
लीलो चरण री खुल्ली छूट है
इजगर-सी कम्पनियां नै अर
मालदारां नै
जुआनी अठै री
सड़ै बठी बेकार
का मरै जैर खाय’र ।
</poem>
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