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कस्बो / निशान्त

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|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
ईं रै
लाम्बै-चौड़ै पेट मांय
ठा नी के के है
वारड-मोहलां लुको राख्या है
कितणा ई राज
जे अखबार में न छपै
तो ईं रै
अेक सिरै पर हुयेड़ी हित्या री खबर
दूजै सिरै तांई
कदैई नीं पूगै ।
प्यार अर खार रै किस्सां रो
ते कैवणो ई के
अठै रजवाड़ां रै मैलां नै
चिगांवती ‘कोठियां’ ई भौत है तो
गरीबां रा कोठा भी है
सीदा-सादा घर-मकान तो
मावै ई कोनी
अठै पचासूं मिंदर
मसीत
गुरुद्वारां साथै
सांप-छत्तां दांई उगेड़ा है
स्कूल अर कालेज
मणसां री भीड़ मांय
जाण्यो-पिछाण्यो
अेक-आधो मुसकल स्यूं निकळै
साधनां रै
गरदै अर धूंअैं स्यूं
दम घुटै
ईं रै बारलै पासै
तालां मांय
कीं लोग
पड़्या रैवै
जाणै जूनै जमानै रै
किण ई नगर
मांय आया हुवै
सै’त
गूंद
लकड़ी
अर
लकड़ी बरगा आपरा हाड
बेचण सारू ।
</poem>
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