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Kavita Kosh से
माँ बचाती थी धूप, बारिश से
सर पे आँचल को मेरे छा छा कर
कितने मरते हैं भूक से, कितने
साँड़ जैसे हुए हैं खा खा कर
कोई आता नहीं मदद को 'रक़ीब'
देखते सब हैं दर को वा वा कर
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