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वली दकनी / राजेश जोशी

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बात इक्कीसवीं सदी की पहली दहाई के शुरूआती दिनों की है
जब बर्बरता और पागलपन का एक नया अध्याय शुरू हो रहा था
कई रियासतों और कई क़िस्म की सियासतों वाले एक मुल्क में गुजरात नाम का एक सूबा था
जहाँ अपने हिन्दू होने के गर्व और मूर्खता में डूबे हुए क्रूर लोगों ने --
जो सूबे की सरकार और नरेन्द्र मोदी नामक उसके मुख्यमन्त्री के
वह हिन्दी-उर्दू की साझी विरासत का कवि था
जो लगभग चार सदी पहले हुआ था और प्यार से जिसे बाबा आदम भी कहा जाता था ।था।
हालाँकि इस कारनामे का एक दिलचस्प परिणाम सामने आया
वरना वह वली से पहले का और ज़्यादा बड़ा कवि था !
फिर उन लोगों ने जिनका ज़िक्र ऊपर कई बार किया जा चुका है
कोर्स की किताबों से वो सारे सबक़ जो वली दकनी के बारे में लिखे गए थे चुन-चुनकर निकाल दिए ।
यह क़िस्सा क्योंकि इक्कीसवीं सदी की भी पहली दहाई के शुरूआती दिनों का है
फिर आदमी की याददाश्त की भी एक हद होती है !
और कई बातें इतनी तकलीफ़देह होती है कि उन्हें याद रखना और दोहराना भी तकलीफ़देह होता है
इसलिए उन्हें यहाँ जान-बूझकर भी कुछ नामालूम-सी बातों को छोड़ दिया गया है
लेकिन एक बात जो बहुत अहम है और सौ टके सच है
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