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ऎसा आदमी था मैं / असद ज़ैदी

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ऎसा ऐसा आदमी था मैं कि हॊंठ होंठ नहीं थे
बोल नहीं सकता था जो सोचता था
कि अन्दर ही अन्दर ख़ुश रहता था
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