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{{KKRachna
|रचनाकार=अखिलेश श्रीवास्तव ‘चमन’
}}
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<poem>
सुमन बनें हम हर क्यारी के
बन उपवन महकें,
चलो दोस्त! हम सूरज बनकर
धरती पर चमकें!
एक धरा है, एक गगन है,
सब की खातिर एक पवन है,
फिर क्यों बँटा-बँटा-सा मन है?
आओ स्नेह-कलश बनकर हम
हर उर में छलकें!
कहीं खो गया है अपनापन,
सब के होठों पर सूनापन,
चुप्पी साधे, हर घर-आँगन।
बुलबुल, कोयल, मैना बनकर
डाल-डाल चहकें!
नयन किसी के रहें न गीलें,
हँसते-हँसते जीवन जी लें,
अमृत-विष मिल-जुलकर पी लें।
हर मुश्किल से तपकर निकलें
कुंदन बन दमकें!
</poem>
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|रचनाकार=अखिलेश श्रीवास्तव ‘चमन’
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सुमन बनें हम हर क्यारी के
बन उपवन महकें,
चलो दोस्त! हम सूरज बनकर
धरती पर चमकें!
एक धरा है, एक गगन है,
सब की खातिर एक पवन है,
फिर क्यों बँटा-बँटा-सा मन है?
आओ स्नेह-कलश बनकर हम
हर उर में छलकें!
कहीं खो गया है अपनापन,
सब के होठों पर सूनापन,
चुप्पी साधे, हर घर-आँगन।
बुलबुल, कोयल, मैना बनकर
डाल-डाल चहकें!
नयन किसी के रहें न गीलें,
हँसते-हँसते जीवन जी लें,
अमृत-विष मिल-जुलकर पी लें।
हर मुश्किल से तपकर निकलें
कुंदन बन दमकें!
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