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घर / दिविक रमेश

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<poem>पापा क्यों अच्छा लगता है
अपना प्यारा-प्यारा घर?
घूम-घाम लें, खेल-खाल लें
नहीं भूलता लेकिन घर।

नहीं आपको लगता पापा
है माँ की गोदी-सा घर।
प्यारी-प्यारी ममता वाला
सुंदर-सुंदर न्यारा घर।

थककर जब वापस आते हैं
कैसे बिछ-बिछ जाता घर।
खिला-पिला आराम दिलाकर
नई ताजगी देता घर।

पर पापा, इक बात बताओ
नहीं न होता सबका घर।
क्या करते होंगे वे बच्चे
जिनके पास नहीं है घर?
</poem>
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