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{{KKRachna
|रचनाकार=अजय जनमेजय
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>रेल चली छुक-छुक,
रेल चली छुक-छुक!
रेल में थे नाना,
साथ लिए खाना।
खाना खाया चुप-चुप,
रेल चली छुक-छुक!
रेल में थी दादी,
बिल्कुल सीधी-सादी।
देख रही टुक-टुक,
रेल चली छुक-छुक!
रेल में थी मुनिया,
देखने को दुनिया।
दिल करे धुक-धुक,
रेल चली छुक-छुक!
</poem>
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रेल चली छुक-छुक!
रेल में थे नाना,
साथ लिए खाना।
खाना खाया चुप-चुप,
रेल चली छुक-छुक!
रेल में थी दादी,
बिल्कुल सीधी-सादी।
देख रही टुक-टुक,
रेल चली छुक-छुक!
रेल में थी मुनिया,
देखने को दुनिया।
दिल करे धुक-धुक,
रेल चली छुक-छुक!
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