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<poem>आधे गोरे आधे काले, आए मिस्टर मोती,
एक टाँग में पहन पजामा, एक टाँग में धोती।
एक पैर में जूता पहने, एक पैर में मौजा,
एक हाथ में रोटी पकड़े, एक हाथ में गोज़ा।
एक बाँह में अचकन डाले, एक बाँह में कोट,
रोकर माँगे मक्खन-बिस्कुट, हँस माँगे अखरोट।
कंधे पर तो पड़ा जनेऊ, मगर बढ़ाकर चोटी,
झूठ-मूठ की मूँछ लगाई, मुँह पर दाढ़ी छोटी।
काज़ल लगा हाथ मुँह पोता, सारी डिब्बी थोपी,
माथे पर हैं तिलक लगाए सिर पर तुर्की टोपी।
कुर्सी पर वे लेट रहे हैं, रखे पलंग पर पैर,
यह पंडित जी या मौलाना, खुदा करे अब खैर।

-साभार : बालसखा, अक्तूबर, 1946, 361
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