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बादल भैया / सुरेंद्र विक्रम

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<poem>बादल भैया, बहुत हो चुका
अब तुम अपने घर जाओ,
सभी ओर पानी ही पानी
अब पानी मत बरसाओ।

एक बार जो शुरू किया तो
रहे बरसते झर-झर-झर,
उफने सारे ताल-तलैया
सराबोर छानी-छप्पर।
डाली पर गौरैया भीगी
भीग गए सब कपड़े-लत्ते,
छत के ऊपर बिल्ली भीगी
भीगे सभी पेड़ के पत्ते।

पानी इतना बहा सड़क पर
गलियारे तक डूब गए,
कैसे घर से बाहर निकलें
बैठे-बैठे ऊब गए।

बादल भैया, बादल भैया
अब जाकर आराम करो,
सूरज दादा, जल्दी आओ
आकर थोड़ा काम करो।
</poem>
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