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|रचनाकार=सूर्यकुमार पांडेय
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<poem>था पहले यह कितना छोटा,
हट्टा-कट्टा-मोटा - मोटा।

मगर हो गया अब बुड्ढा,
मेरी इस गुड़िया का गुड्डा।

दाँत गिर गए मुँह से सारे,
काँप रहा सरदी के मारे।

चाँदी जैसे बाल हो गए,
पिचके-पिचके गाल हो गए।

हरदम बैठा ही रहता है,
मेरी गुड़िया से कहता है।

चलो चटपटी चीज बनाओ,
सुंदर-सा पकवान खिलाओ।

काम न करता इक्का-दुक्का,
गुड़-गुड़ पीता रहता हुक्का।

बुड्ढा - गुड्डा, गुड्डा - बुड्ढा।
</poem>
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