भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रत्नप्रकाश शील |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रत्नप्रकाश शील
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>
अक्कड़-बक्कड़,
लाल बुझक्कड़!
कितना पानी बीच समंदर,
कितना पानी धरती अंदर!
आसमान में कितने तारे,
वन में पत्ते कितने सारे।
दाएँ बाएँ देखें अक्कड़,
ऊपर-नीचे देखे बक्कड़!
अक्कड़-बक्कड़,
लाल बुझक्कड़!
लाल बुझक्कड़, जेब टटोलें,
फिर जने क्या, खुद से बोले-
अरे हो गया यह सब कैसे,
कहाँ गए पॉकेट के पैसे!
अकल नदारद, बिल्कुल फक्कड़,
अक्ल नहीं तो सूखे लक्कड़!
अक्कड़-बक्कड़,
लाल बुझक्कड़!
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=रत्नप्रकाश शील
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>
अक्कड़-बक्कड़,
लाल बुझक्कड़!
कितना पानी बीच समंदर,
कितना पानी धरती अंदर!
आसमान में कितने तारे,
वन में पत्ते कितने सारे।
दाएँ बाएँ देखें अक्कड़,
ऊपर-नीचे देखे बक्कड़!
अक्कड़-बक्कड़,
लाल बुझक्कड़!
लाल बुझक्कड़, जेब टटोलें,
फिर जने क्या, खुद से बोले-
अरे हो गया यह सब कैसे,
कहाँ गए पॉकेट के पैसे!
अकल नदारद, बिल्कुल फक्कड़,
अक्ल नहीं तो सूखे लक्कड़!
अक्कड़-बक्कड़,
लाल बुझक्कड़!
</poem>