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|रचनाकार=आजाद रामपुरी
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<poem>पढ़-लिखकर हो गई सयानी,
लिखने लगी मगन हो चिट्ठी!
मौसम-टीचर ने वर्षा की,
ऋतुशाला से कर दी छुट्टी!

मीठी किरणों की मुस्कानें,
लेकर सर्दी मचल रही है।
घर-घर मेहमानी जाड़े की,
ठंड हिरन-सी उछल रही है।

गर्मी से जाड़े की चखचख,
झगड़ा बढ़ा, हो गई छुट्टी!

गरम पकौड़े रौब गाँठते,
हँसने लगे चाय के प्याले।
कंबल, पैंट, रजाई, मफलर,
शान दिखाए शाल-दुशाले।

शोख चपल, अल्हड़ इठला कर,
सर्दी लगी गाँठने चड्ढी!
</poem>
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