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{{KKRachna
|रचनाकार=देवेंद्रकुमार
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>माँ गुस्सा थी सारे घर से
पागल हुई रसोई!
पापा ने जब गैस जलाई,
खुद ही पानी डाल बुझाई।
डिब्बा-डिब्बा ढूँढ़ थके हम
चीज मिली न कोई!
सब कुछ उलट-पुलट कर डाला
गिरा दूध में गरम मसाला
मुन्नी ने जो घूँ भरा तो
चीख-चीखकर रोई!
मैंने गरम तवा खिसकाया,
पापा ने भी हाथ जलाया।
चीख-पुकार मची थी घर में
काम हुआ न कोई!
मम्मी जी फिर उठकर आई,
हम बाहर को भागे भाई।
पापा मम्मी से कुछ बोले,
हँसने लगी रसोई!
</poem>
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|संग्रह=
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<poem>माँ गुस्सा थी सारे घर से
पागल हुई रसोई!
पापा ने जब गैस जलाई,
खुद ही पानी डाल बुझाई।
डिब्बा-डिब्बा ढूँढ़ थके हम
चीज मिली न कोई!
सब कुछ उलट-पुलट कर डाला
गिरा दूध में गरम मसाला
मुन्नी ने जो घूँ भरा तो
चीख-चीखकर रोई!
मैंने गरम तवा खिसकाया,
पापा ने भी हाथ जलाया।
चीख-पुकार मची थी घर में
काम हुआ न कोई!
मम्मी जी फिर उठकर आई,
हम बाहर को भागे भाई।
पापा मम्मी से कुछ बोले,
हँसने लगी रसोई!
</poem>