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पागल हुई रसोई / देवेंद्रकुमार

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<poem>माँ गुस्सा थी सारे घर से
पागल हुई रसोई!

पापा ने जब गैस जलाई,
खुद ही पानी डाल बुझाई।
डिब्बा-डिब्बा ढूँढ़ थके हम
चीज मिली न कोई!

सब कुछ उलट-पुलट कर डाला
गिरा दूध में गरम मसाला
मुन्नी ने जो घूँ भरा तो
चीख-चीखकर रोई!

मैंने गरम तवा खिसकाया,
पापा ने भी हाथ जलाया।
चीख-पुकार मची थी घर में
काम हुआ न कोई!

मम्मी जी फिर उठकर आई,
हम बाहर को भागे भाई।
पापा मम्मी से कुछ बोले,
हँसने लगी रसोई!
</poem>
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