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हुआ सवेरा / भीष्मसिंह चौहान

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<poem>बीती रात, प्रात मुसकाया
बोलीं चिड़ियाँ-चूँ-चूँ!
प्यारा कुत्ता करता फिरता
पूँछ हिलाकर-कूँ-कूँ!

देने लगीं सुनाई, सड़कों पर-
मोटर की पों-पों!
जोर-जोर से लगे बोलने
कुत्तों के दल-भों-भों!

द्वार-द्वार दे रहे दिखाई
दूध बाँटते ग्वाले!
खन-खन-खन खन लगे बोलने
गरम चाय के प्याले!

सूरज की किरणों की छिटकी
सभी ओर है लाली!
फुलवारी में फूल बीनने
पहुँच गए हैं माली!
</poem>
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