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|रचनाकार=शंभूलाल शर्मा 'बसंत'
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<poem>अमराई तो खूब सजी है
मैना की है शादी,
इसीलिए तो बगिया-बगिया
कोयल करे मुनादी।
पड़की, सुग्गा, श्यामा, बुलबुल
इक से एक चिरैया,
हँस-हँस मैना से बतियाएँ
संग में है गौरैया।
चूँ-चूँ, चीं-चीं, कूँ-कूँ कितने
स्वर में गाएँ बढ़िया,
ताक-धिना-धिन, फुदक-फुदक कर
नाच रही हैं चिड़ियाँ।
डाल-डाल पर पात सजा है
मौसम है सुखदाई,
शादी के दिन मैना रानी
मन ही मन सकुचाई।
सोच रही है मैना क्या-क्या
हुई शर्म से लाल,
मुझे बता दे, कोई-
कैसी होती है ससुराल?
</poem>
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