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कठपुतली / रमेश कौशिक

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<poem>तकली-सी नाचे कठपुतली
छम-छम छम-छम, छम-छम छम-छम।

एक हाथ है सिर के ऊपर
हाथ दूसरा रखे कमर पर,
लगा रही चक्कर पर चक्कर
जैसे लट्टू बीच सड़क पर
बँधी कमर में उसके सुतली
छम-छम छम-छम, छम-छम छम-छम।

एक पाँव को इधर उठाए
पाँव दूसरा उधर बढ़ाए,
एक आँख को इधर नचाए
आँख दूसरी उधर चलाए!
दिपती है बिजली-सी उजली
छम-छम छम-छम, छम-छम छम-छम।

कभी थिरकती, कभी मचलती
कभी संभलती, कभी फिसलती,
कभी मटकती, कभी निरखती
हाव-भाव उसके अनगिनती।

ताल-ताल पर पूरी तुलती
छम-छम छम-छम, छम-छम छम-छम।
</poem>
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