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{{KKRachna
|रचनाकार=विनोद 'भृंग'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>जाने कब से पूछ रहा है
खड़े-खड़े नन्हा भोला,
अम्माँ, क्या होता है सूरज
बड़ा, आग का इक गोला!
बड़े सवेरे आ जाता है
लाल-लाल चार ओढ़े,
दोपहरी में यह धरती पर
रंग अजब पीला छोड़े।
अपने रंग कहाँ पर रखता,
पास नहीं इसके झोला!
इतनी धूप कहाँ से लाता
अम्माँ मुझको बतलाओ,
गुल्लक या संदूक बड़ा-सा
हो इस पर तो दिखलाओ।
इससे पूछ रहा हूँ कब से,
मगर नहीं मुझसे बोला!
जब बादल आते हैं अम्माँ
तब यह कहाँ चला जाता,
और मुझे यह भी बतलाना
कब दिन में खाना खाता।
खाना खाकर पानी पीता
या पीता कोका कोला!
</poem>
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|संग्रह=
}}
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<poem>जाने कब से पूछ रहा है
खड़े-खड़े नन्हा भोला,
अम्माँ, क्या होता है सूरज
बड़ा, आग का इक गोला!
बड़े सवेरे आ जाता है
लाल-लाल चार ओढ़े,
दोपहरी में यह धरती पर
रंग अजब पीला छोड़े।
अपने रंग कहाँ पर रखता,
पास नहीं इसके झोला!
इतनी धूप कहाँ से लाता
अम्माँ मुझको बतलाओ,
गुल्लक या संदूक बड़ा-सा
हो इस पर तो दिखलाओ।
इससे पूछ रहा हूँ कब से,
मगर नहीं मुझसे बोला!
जब बादल आते हैं अम्माँ
तब यह कहाँ चला जाता,
और मुझे यह भी बतलाना
कब दिन में खाना खाता।
खाना खाकर पानी पीता
या पीता कोका कोला!
</poem>