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{{KKRachna
|रचनाकार=लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>कंप्यूटर जी, तुम कैसे,
ऐसा कमाल कर पाते हो,
भारी-भारी प्रश्न गणित के
पल में कर दिखलाते हो।
एक सवाल लगाने में
मुझको घंटा भर लगता है,
और कभी इतना करके भी
उत्तर गलत निकलता है।
क्या तुमको जादू आता है
जिसका असर दिखाते हो,
या दिमाग के लिए, खास कुछ
जड़ी-बूटियाँ खाते हो!
मुझको भी तरकीब बताओ
गणित सही कर पाऊँ मैं
मम्मी-पापा खुश हों
जब सौ में सौ नंबर पाऊँ मैं!
</poem>
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|रचनाकार=लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>कंप्यूटर जी, तुम कैसे,
ऐसा कमाल कर पाते हो,
भारी-भारी प्रश्न गणित के
पल में कर दिखलाते हो।
एक सवाल लगाने में
मुझको घंटा भर लगता है,
और कभी इतना करके भी
उत्तर गलत निकलता है।
क्या तुमको जादू आता है
जिसका असर दिखाते हो,
या दिमाग के लिए, खास कुछ
जड़ी-बूटियाँ खाते हो!
मुझको भी तरकीब बताओ
गणित सही कर पाऊँ मैं
मम्मी-पापा खुश हों
जब सौ में सौ नंबर पाऊँ मैं!
</poem>