भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
वही जो सिर फिरा पागल क़तई था<br>
आज एकाएक वह<br>
जागरित जागृत बुद्धि है, प्रज्वलत् धी है।<br>छोड़ सिर-फिरा पवनसिरफिरापन,<br>
बहुत ऊँचे गले से,<br>
गा रहा कोई पद, कोई गान<br>
खूब भई,खूब भई,<br>
जानता क्या वह भी कि<br>
 सैनिक सैनिक प्रशासन है नगर में वाक़ई!<br>
क्या उसकी बुद्धि भी जग गयी!<br><br>
Anonymous user