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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रतिमा पांडेय
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>आँख-मिचौली खेलें मम्मी
रुको जरा, छिप जाऊँ मम्मी!
बनो चोर तुम, मैं छिप जाऊँ
तुम ढूँढ़ो मैं हाथ ना आऊँ
हार मानकर जब तुम बैठो,
तभी अचानक मैं आ जाऊँ!
गोदी में तेरी आकर मैं,
खिल-खिल हँसूँ-हँसाऊँ मम्मी!
मम्मी फिर मैं चोर बनूँगा,
छिपना आप पलँग के नीचे,
पकडँू जब मैं पीछे-पीछे।
खेल-कूद करके यूँ ही मैं,
तुमको भी बहलाऊँ मम्मी!
</poem>
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<poem>आँख-मिचौली खेलें मम्मी
रुको जरा, छिप जाऊँ मम्मी!
बनो चोर तुम, मैं छिप जाऊँ
तुम ढूँढ़ो मैं हाथ ना आऊँ
हार मानकर जब तुम बैठो,
तभी अचानक मैं आ जाऊँ!
गोदी में तेरी आकर मैं,
खिल-खिल हँसूँ-हँसाऊँ मम्मी!
मम्मी फिर मैं चोर बनूँगा,
छिपना आप पलँग के नीचे,
पकडँू जब मैं पीछे-पीछे।
खेल-कूद करके यूँ ही मैं,
तुमको भी बहलाऊँ मम्मी!
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