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अशीर्षक / रामनरेश पाठक

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<poem>कहीं से टूटने और जुड़ने के बीच
एक ठूंठ वाक्य, एक जर्जर पुल
एक चर्राता चौखटा होता है.

पड़ोसी आँख और दूर कान के बीच
एक इतिहास की छटपटाहट
एक अन्धेखे की रपट
एक टेप रिकार्डर की हलचल होती है.

वक़्त और सिलसिले के बीच
कई डाक तार घर होते हैं

जहां सभ्यता देह बदलती है
और बच्चे सवाल हल करते हैं
अगली किताबात के लिए.
</poem>
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