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Kavita Kosh से
भ्रमित हुई बुद्धि, चेहरे पर चिपक गई मीठी मुस्कान
ख़ूब हुआ फिर खेल, जगत से इतने रिश्ते बांधेबांध लिए
छोडूं किसे निभाऊँ किसको बौराई नन्ही सी जान