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<poem>एकदम भभक कर बुझने से पहले
मैं बचा लूंगी उसे
हाथों की ओट से
ऐसे कैसे जायेगा प्रेम
मेरी असमाप्त कविता छोड़कर...!</poem>
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मैं बचा लूंगी उसे
हाथों की ओट से
ऐसे कैसे जायेगा प्रेम
मेरी असमाप्त कविता छोड़कर...!</poem>