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{{KKRachna
|रचनाकार=निर्मला पुतुल
|संग्रह=
}}
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<poem>अखबर बेचती लड़की
अखबार बेच रही है या खबर बेच रही है
यह मैं नहीं जानती
लेकिन मुझे पता है कि वह
रोटी के लिए अपनी आवाज बेच रही है
अखबार में फोटो छपा है
उस जैसी बदहाल कई लड़कियों का
जिससे कुछ-कुछ उसका चेहरा मिलता है
कभी-कभी वह तस्वीर देखती है
कभी अपने आप को देखती है
तो कभी अपने ग्राहकों को
वह नहीं जानती है कि आज के अखबार की
ताजा खबर क्या है
वह जानती है तो सिर्फ यह कि
कल एक पुलिस वाले ने
भद्दा मजाक करते हुए धमकाया था
वह इस बात से अंजान है कि वह अखबार नहीं
अपने आप को बेच रही है
क्योंकि अखबार में उस जैसी
कई लड़कियों की तस्वीर छपी है
जिससे उसका चेहरा मिलता है!
(निर्मला पुतुल की प्रकाशनाधीन पुस्तक ‘फूटेगा नया विद्रोह’ से साभार)</poem>
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<poem>अखबर बेचती लड़की
अखबार बेच रही है या खबर बेच रही है
यह मैं नहीं जानती
लेकिन मुझे पता है कि वह
रोटी के लिए अपनी आवाज बेच रही है
अखबार में फोटो छपा है
उस जैसी बदहाल कई लड़कियों का
जिससे कुछ-कुछ उसका चेहरा मिलता है
कभी-कभी वह तस्वीर देखती है
कभी अपने आप को देखती है
तो कभी अपने ग्राहकों को
वह नहीं जानती है कि आज के अखबार की
ताजा खबर क्या है
वह जानती है तो सिर्फ यह कि
कल एक पुलिस वाले ने
भद्दा मजाक करते हुए धमकाया था
वह इस बात से अंजान है कि वह अखबार नहीं
अपने आप को बेच रही है
क्योंकि अखबार में उस जैसी
कई लड़कियों की तस्वीर छपी है
जिससे उसका चेहरा मिलता है!
(निर्मला पुतुल की प्रकाशनाधीन पुस्तक ‘फूटेगा नया विद्रोह’ से साभार)</poem>