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Kavita Kosh से
हुस्न की ताब जो न लाती थी
वो नज़र अब किधर गई यारो
आज कुछ भी नज़र नहीं आता
गर्द हर सू बिखर गई यारो
दास्तां मेरी पेशतर मुझसे
हर गली हर नगर गई यारो
नक़्श था उस के दिल पे नाम मिरा
हाय! वो रूत गुज़र गई यारो
साथ तो छूटना ही था “ज़ाहिद”
ज़िन्दगी क्यूं ठहर गई यारो
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