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{{KKRachna
|रचनाकार=ज़ाहिद अबरोल
|संग्रह=दरिया दरिया-साहिल साहिल / ज़ाहिद अबरोल
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
टूटा है जिस्म-ओ-जां का यह रिश्ता अभी अभी
उट्ठा है मेरे घर से जनाज़ा अभी अभी
धड़कन बढ़ी है दिल की हुए सुर्ख़ मेरे गाल
जैसे कि उसने मुझको पुकारा अभी अभी
सहरा में भी पहुंच ही गई है मिरी नमी
इक जाम हूं जो ख़्वाब में छलका अभी अभी
इस के लिए तो क़ब्र थी पहले से ही खुदी
जिस ख़्वाब की झलक ही को देखा अभी अभी
“ज़ाहिद” यह ज़िन्दगी की फ़क़त डोर ही तो थी
तोड़ा है जिसने मैके से नाता अभी अभी
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</poem>
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|रचनाकार=ज़ाहिद अबरोल
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
टूटा है जिस्म-ओ-जां का यह रिश्ता अभी अभी
उट्ठा है मेरे घर से जनाज़ा अभी अभी
धड़कन बढ़ी है दिल की हुए सुर्ख़ मेरे गाल
जैसे कि उसने मुझको पुकारा अभी अभी
सहरा में भी पहुंच ही गई है मिरी नमी
इक जाम हूं जो ख़्वाब में छलका अभी अभी
इस के लिए तो क़ब्र थी पहले से ही खुदी
जिस ख़्वाब की झलक ही को देखा अभी अभी
“ज़ाहिद” यह ज़िन्दगी की फ़क़त डोर ही तो थी
तोड़ा है जिसने मैके से नाता अभी अभी
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