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जूझ / गौतम अरोड़ा

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|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
नवा सबद
आडा-टेडा भाव
काचा-पाका अरथ
नवी कलम सूं
मांडू
नवै कागद
नवी कविता सारूं
पण कठै सूं लावू
नवी पीड़, नवी प्रीत, नवी जूण,
नवी जूझ अर नवी झाळ....

बदळग्या हथियार स्यात
तरीको नवो होयग्यो
पण वठै री वठै है
पीढियां जूनी पीड
बरसां-बरस चालता जुध
जुगां जूनी कळपती झाळ
अर रोटी, कपड़ां, मकान सारूं
मिनखाजूण री सागण जूझ....!
</poem>
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