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Kavita Kosh से
अब उलझी लकीरों के जंजाल में
निचोडें न अश्रु-सिंचित ह्रदय के रेशों को
काव्य-रसों के ख्याल खयाल में
निर्झर बहती जो ले जाए स्वर्ग तक
उस वैतरणी पे पर बाँध कोई बंधने मत देना
इस बार तुम मुझे लिखने मत देना