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{{KKRachna
|रचनाकार=उर्मिला माधव
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem> अब ज़रूरी हो गया राहें बदलना,
ख़ुद खड़े रहना अकेले है संभलना,
राह को हमवार करना ख़ुद-ब-ख़ुद ही,
और ख़ुद ही वक़्त के साँचे में ढलना,
भीख में क्या माँगना, कोई मुहब्बत,
जिस तरह हो ख़ुद के ही पैरों से चलना,
दम बख़ुद आज़ाद हैं अपने जहां में,
दम बख़ुद छोड़ेंगे गैरों पै मचलना,
दूसरों के दिल पै क्यूँ पाबंदियां हों,
ख़ुद भी आँखों को नहीं रो के मसलना!</poem>
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|रचनाकार=उर्मिला माधव
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<poem> अब ज़रूरी हो गया राहें बदलना,
ख़ुद खड़े रहना अकेले है संभलना,
राह को हमवार करना ख़ुद-ब-ख़ुद ही,
और ख़ुद ही वक़्त के साँचे में ढलना,
भीख में क्या माँगना, कोई मुहब्बत,
जिस तरह हो ख़ुद के ही पैरों से चलना,
दम बख़ुद आज़ाद हैं अपने जहां में,
दम बख़ुद छोड़ेंगे गैरों पै मचलना,
दूसरों के दिल पै क्यूँ पाबंदियां हों,
ख़ुद भी आँखों को नहीं रो के मसलना!</poem>