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|रचनाकार=शिव कुमार झा 'टिल्लू'
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<poem>यौ-यौ वसंत
फेरो घुरि आउ
पछवा कें पुरवा सन सिहकाउ
नवका कोमल अहिवातक संग
पुरना पुरहरि मे दीप जराऊ .............
अछि राग सिनेहक मिलन एत'
एही ठां भोगक अनुरागी
सभ सुरभि सुगंधक बात करथि
नवयौवन हो वा वैरागी
भासल किछु पिरही बीच लहरि
हुनको हमरे संग कात लगाउ..............
अछि बाहुबलक सम्बल जग मे
हमर बल शांतिक संदेशी
इन्द्रधनुष जकाँ साकार लिप्त
एक्के संग सटल विविध भेशी
टूटय नहि कखनो घौर हमर
एकटा मधुलस्सा एहेन बनाउ .............
ई अंतिम चिट्ठी अहँक नाम
हमराक बाद के ध्यान देत
मधुरी उपवन हुअए आर दीब
गप्प छोट बूझि के ज्ञान देत
अचकेमे उपवन सांसल लागय
पुनि नेह सुवासित बसात बहाउ ........

</poem>
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