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चैतावरि ३ / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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<poem>फूलल अड़हुल लाल हो रामा ,
चैत इजोरिया ..
रक्तभ भव्या भाल हो रामा ,
चैत इजोरिया ..
फ़ुल्ह्र्ल फड़ केँ भृंग चुसै छथि
गमगम बाग़ रसाल हो रामा ,
वसंत पमरिया
मेहक युग संग बरद पुरातन
मशीनक सगर महाल हो रामा ,
ज्ञान कहरिया ..
अभावक सर्द मे औल छँटै अछि ,
बिनु स्वादक रबिया टाल हो रामा ,
कत' ओ सतरिया ..!
पॉपक धुन पर कोइली बहसलि
टुकटुक ताकय बुढ़बा शाल हो रामा ,
बिदकल बहुरिया ..
संस्कृतिक सारा पर मंच बनल अछि
लागथि चैतावरि काल हो रामा ,
गहन अन्हरिया ..</poem>
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