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बचाओ / राग तेलंग

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<poem>मेरे समय के सच में
सच में
बहुत ज्यादा झूठ घुल-मिल गया है

झूठ मेरे समय का सच है

बेहद मुश्किल है और ख़तरनाक भी
आज का सच
पूरा का पूरा
बर्दाश्त कर सकना

लिखूं भी तो
पढ़ेगा कौन ?
अपने समय का सच

और पढ़ेगा भी तो
क्या मुफीद लगेगा
अपने समय का सच ?

पहचान के संकट के दौर में
सच की पहचान संकट में है ।
</poem>
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