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{{KKRachna
|रचनाकार=राग तेलंग
|संग्रह=
}}
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<poem>सुबह-सुबह
रोशनी का एक टुकड़ा
पानी की एक बूंद के भीतर जाकर
ठहर गया है
मानो मैं कोई एक चमकता हुआ हीरा देख रहा हूं
कुछ ही देर में
ओझल हो जाएगा
यह अप्रतिम दृश्य
पानी की बूंद में ठहरी हुई चमक
आकाश में चली जाएगी
किसी तारे के भीतर
रात होते ही।
</poem>
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<poem>सुबह-सुबह
रोशनी का एक टुकड़ा
पानी की एक बूंद के भीतर जाकर
ठहर गया है
मानो मैं कोई एक चमकता हुआ हीरा देख रहा हूं
कुछ ही देर में
ओझल हो जाएगा
यह अप्रतिम दृश्य
पानी की बूंद में ठहरी हुई चमक
आकाश में चली जाएगी
किसी तारे के भीतर
रात होते ही।
</poem>