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{{KKRachna
|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>वो निर्णायक की भूमिका में थे
अपनी सफेद पगड़ियों को
अपने सर पर धरे
अपना काला निर्णय
हवा में उछाला
इज्जतदार भीड़ ने
लड़की और लड़के को
जमीन पर घसीटा
और गांव की
सीमा पर पटक दिया
सारी रात गांव के दिये
मद्धिम जले
गाय रंभाती रही
कुछ न खाया
सबने अपनी सफेद पगड़ी खोल दी
एक उदास कफ़न में सोती रही धरती
रेंगता रहा प्रेम गांव की सीमा पर।</poem>
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|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
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<poem>वो निर्णायक की भूमिका में थे
अपनी सफेद पगड़ियों को
अपने सर पर धरे
अपना काला निर्णय
हवा में उछाला
इज्जतदार भीड़ ने
लड़की और लड़के को
जमीन पर घसीटा
और गांव की
सीमा पर पटक दिया
सारी रात गांव के दिये
मद्धिम जले
गाय रंभाती रही
कुछ न खाया
सबने अपनी सफेद पगड़ी खोल दी
एक उदास कफ़न में सोती रही धरती
रेंगता रहा प्रेम गांव की सीमा पर।</poem>