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|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
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<poem>मेरा-उसका रिश्ता है क्या.
इन बातों में रक्खा है क्या.

कैसे उसको अपना मानें,
अपना ऐसा होता है क्या.

खार कभी गुल हो सकता है,
ऐसा तूने देखा है क्या.

सीधा तो दिखता है पर वो,
जैसा दिखता वैसा है क्या.

वो होशियार बहुत होगा पर,
तू भी कोई बच्चा है क्या.

परदे में भी सब दिखता है,
ये भी कोई परदा है क्या.

तेरी आँखें देख रहा हूँ,
कोई सपना टूटा है क्या.
</poem>
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