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समय परिवर्तन / प्रेमघन

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|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=जीर्ण जनपद / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
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<poem>
सो सब सपने की सम्पति सम अब न लखाहीं।
तासु निवासी जन की सब भाँतिन सों अवनति॥
अपनेहीं घर रह्यो जासु उन्नति को कारन।
ताही के अनुरूप कियो छबि यानैं या मैं धारन॥
</poem>
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