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|रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
}}
[[Category:नज़्म]]{{KKCatNazm}}<poem> मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग<br><br>
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़शाँ <ref>रौशन</ref> है हयात<brref>ज़िंदगी</ref>तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर <ref>दुनिया का ग़म</ref> का झगड़ा क्या है<br>तेरी सूरत से है आलम <ref>दुनिया, ज़माना</ref> में बहारों को सबात<brref>स्थिरता</ref>तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है <br>तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाये<brref>रास्ते पर</ref> हो जायेयूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये<br>और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा<br>राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा<brref>मिलन<br/ref>की राहत के सिवा
मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग<br><br>
अनगिनत सदियों के तारीक <ref>अँधेरा</ref> बहिमाना तलिस्म<brref>निर्मम</ref> तलिस्मरेशम-ओ-अतलस<ref>मुलायम कपड़ा</ref>-ओ-कमख़्वाब <ref>बेशकीमती कपड़ा</ref> में बुनवाये हुये<br>जा-ब-जा <ref>हर कहीं</ref> बिकते हुये कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म<brref>गली और बाज़ार</ref> में जिस्मख़ाक में लिथड़े हुये ख़ून में नहलाये हुये<br>जिस्म निकले हुये अमराज़ <ref>बीमारियों</ref> के तन्नूरों से<brref>भट्ठी</ref> सेपीप बहती हुई गलते हुये नासूरों से<brref>ज़ख्म</ref> सेलौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे<br>अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मग़र क्या कीजे<br>और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा<br>राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा<br><br>
मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग<br/poem>{{KKMeaning}}
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