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Kavita Kosh से
कोई सूराख ना रहा जिसे<br>
बन्द ना न किया गया <br>फिर भी न जाने कब और कैसे<br>
याद से घर भर गया<br><br>
दूसरी ने तिनकों पर<br>
सजा दिए तिनके<br>
'''याद-3<br><br>
मानसून का रुख रुख़ बदला<br>
हवा सूख कर चिमट गई<br>
थम गईं साँसे<br>
बादल टकरा उठे फैंफड़ों फेफड़ों से<br><br>
फरफराती कुछ बून्देबूंदें<br>
नाचती पत्तियों पे<br>
बरसात क्या आई<br>
यादें बरस गईं
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