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धीरे धीरे ढह गया गुंग महल<br>
कुछ बरसों तक रहे खण्हर में सियार लोमड़ियाँ और चमगादड़ें<br>
आगरा के पास की इस शाही तज़िबागाग तज़िबागाह का तो क्या<br>
उस फ़ैज़ाबाद का भी कोई नामोनिशान नहीं मिलता<br>
जहाँ एक दिन पहले बादशाह सलामत ने मक़ाम फ़र्माया था<br><br>
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