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मेरे इशारों पर हँसते थे),<br>
पर उन के चेहरों और मेरी चाहों के बीच<br>
आह, कितने पुराने, अन्धे, पर आज भी अथाह डर हैहैं!<br><br>
डूबते हैं, डूब जाने दो।<br>
इतनी-भर देखी है कि पहचानूँ, बहुत पुरानी है।<br><br>
डूबे, सब डूब जायजाए,<br>
तब एक जो बुल्ला उठेगा,<br>
उभर कर फूटेगा,<br>
और उस की रंगीनी का रहेगा--रहेगा—<br>
क्या? कुछ नहीं!<br>
तभी तो मेरा यह बचा हुआ भरम टूटेगा<br>
यह सँचा हुआ, पर सच में सत्त्वहीन<br>
अहम् ढहेगा, ढहेगा।
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