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फिर अम्न के पैकर की फिज़ा फ़ज़ा क्यों नहीं आतीइन फिरकाफ़िरक़ा-परस्तों को कज़ा क्यों नहीं आती
गोशे में मेरे कहीं दिल के खनकती तो है चूड़ी
कानों में खनकने की सदा क्यों नहीं आती
साक़ी तू पिलाती पिलाता है सदा आँखों जाम से अपनी मुझको होटों आँखों से पिलाने की अदा क्यों नहीं आती
तुझको मेरी बेलौस मोहब्बत की क़सम है
आती हूँ अभी कहके, बता क्यों नहीं आती
जब तुझको नहीं रस्मे मोहब्बत को निभाना
यादों के ख़ुतूत उसके जला क्यों नहीं आती
यूँ शीशए-दिल तोड़ के जाता नहीं कोई
करनी पे उसे अपनी हया क्यों नहीं आती
पूछूँगा मैं लुकमान लुक़मान से ये रोज़े - क़यामतआशिक़ के कैसा है मरज़ की भी इश्क़, दवा क्यों नहीं आती
क्यों छोड़ दिया साथ मेरे जिस्म का तू ने
ऐ रूह तुझे, मुझपे दया क्यों नहीं आती
जीवन में 'रक़ीब' अपने हैं जब चार अनासिर
"यारो मेरे हिस्से में सबा हवा क्यों नहीं आती"
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