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श्लोक गीता के सभी तब सारगर्भित हो गये
पीठ पीछे की प्रशंसा, ही प्रशंसा जानिये सामने आलोचना गुण मेरा अवगुण समझ, परिचित, अपरिचित से लोग विकसित हो गये
बाँट लें संपत्ति , बेटों ने कहा, बापू की अब
अस्थियाँ और पुष्प गंगा में विसर्जित हो गये
देख कैसे पायेंगे पायेगा उन दीन-दुखियों को 'रक़ीब'चक्षु, सुनकर ही व्यथा जब अश्रुपूरित हो गये
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